Sunday 28 December 2014

एक विहान और आगे.....? अस्त के बाद उदय

बचपन में जब कभी  Drawing Competition होता था हम बडे जोश से शामिल होते थे ,  उनमे कुछ विषय में एक विषय मेरा मनचाहा विषय होता था,,,,scenery ..किन्ही खूबसूरत दृश्य के रंगों को अपनी तूलिका के चंद रेशों में समेट कर दिए गए drawing पेपर पर विखेरना ,,,और फिर क्या जहां शोर शराबे लडाई झगडे के बिना हमारा गुजारा होना मुश्किल होता था वही शांति छा जाती थी,,,हर बच्चे के चेहरे पर छाई मशगूल पने को देखते ही बनता था,,,,और अधिकतर पन्नो पर उगते ढलते सूरज को दिखाना एक परंपरा के तेहत होना ही होना होता था. ये श्रंखला हर वर्ष निभाई जाती है . सूर्य अस्त और सूर्य उदय ,,,सूरज तो वही है !

मगर हमारी नयी आशाएं, नया विश्वास  फिर से जन्म लेता है, एक वर्ष नहीं एक युग का अंत समझकर हम फिर से पुरानी राहों पर चलना शुरू करते हैं ,, इश्वर भी मुस्करा कर मान लेते हैं ...चलो येही सही ..कुछ अच्छी सोच के साथ बदलो तो सही.... :-)