Tuesday 7 February 2012

कही एक दूर बांसुरी की धुन राधा का नाम बुलाती है


कही एक दूर बांसुरी की धुन राधा का नाम बुलाती है

by Suman Mishra on Wednesday, 8 February 2012 at 00:23

कही दूर एक तान जो बहती , स्वर समीर में धुन संवरती,
पञ्च तत्व से जुडी हुयी ये , मन मयूर के मस्त नृत्य छनकती
यमुना की लहरों में बहती, आती है धुन स्वरों में बहती
बूँद ज़रा पानी की छु कर , सुन लो कृष्ण की बंसी  बजती


राधे का बंसी से बैर है, ये नारी वो नाद अद्व्येत है,
वो सुर मोहन के होंठों पर, क्यों राधे को व्यथित करे है.
एक तान जो छेड़े मोहन, सारे अंग यथावत निश्चल,
बनी जो मूरत सजी वो मूरत, एक ही टक बस राधे मोहन


स्वर लहरी लहरों  से छानकर, चाँद चांदनी मचल मचल कर
एक निशा और उसपर ये छवि, निरखत मन सानंद हो मधुकर
कल कल ध्वनि दे ताल सरोवर, मदन रति कर नृत्य मनोहर,
हृदयंगम अब एक हैं दोनों, कृष्ण और राधेय जगत वर


मन स्पंदन की गति कैसी, नहीं नियति इस जगत के जैसी
एक बार जो देख ले कोई, इस तन से फिर मोह ना सोई
नैनन द्वार से निकसत अछर, बनत कवित ज्यों युग युगांतर

निर्झर मन और शब्द अनोखे, प्रीती येही राधे की कृष्ण पर


(भाषा में थोडा बदलाव यहाँ पर)
काहे रे ओ कान्हा मोरा मन कई चुराय लियो,
भूख नाही प्यास नाही मन को बुझात है
सारी दुनिया की प्रीती पालक बने हो जभी
मोरी प्रीती नाही काहे तुमको जनाय है


मोरा मन मोरा नाही, थिरक के छूट गयो,
काहे तुम मोहिनी सी बांसुरी बजाय दियो,
एक एक पग साथ चलूँ हे मुरारी सुनो
फिर काहे रंग अलग श्याम सा बनाय लियो.

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