Tuesday 22 May 2012

कभी सूरज नहीं निकला तो क्या गजब होगा ? नहीं ! येही अंतस का उजाला बनेगा सूरज सा


कभी सूरज नहीं निकला तो क्या गजब होगा ? नहीं ! येही अंतस का उजाला बनेगा सूरज सा

by Suman Mishra on Saturday, 24 March 2012 at 00:03 ·


कभी सूरज नहीं निकला तो क्या गजब होग ?
नहीं ! अंतस का उजाला बनेगा सूरज सा,
वैसे भी दूरियों का दर्द है छिपा मन में
मगर मन में है बसी आस  राह दे देंगी


कभी आदत नहीं थी यूँ अकेले राहों में
कभी सूरज तो कभी चाँद ने था साथ दिया
आज जब वास्ता हुआ है मेरा अंतस से
क्या गजब रोशनी का भास् हुआ




एक छोटा सा दिया रख लिया है नाविक ने
कही भी रोशनी नहीं हुयी जला लेगा,
अगर तूफ़ान भी आया तो ये जलेगा नहीं
मगर तूफ़ान से लड़ने का सबक दे देगा

कई मुकाम है इस जिन्दगी के आईने पे
कहाँ कुछ लोग नया आइना लिए फिरते
मगर शकले वही रहती है हमेशा से ही
नूर की रोशनी में शक्लें कहाँ छिपती हैं

चलो तन्हाई से बातें करा दे थोड़ी सी
मगर ये दूर हो जायेगी उजाला पा कर
कभी मन के किनारे बैठो अगर मिल लेना
खुश हो के लिपट जायेगी ये थोड़ी सी

कोई मगरूरियत से फासला अँधेरे में
हाथ से हाथ छूट जाए अल- सवेरे में
फिर तो मुश्किल है सफ़र रात और दिन का क्या
जिन्दगी बीत ही जाए किसी बसेरे में



मुझे परवाह नहीं हैअभी हूँ जिस राह पर मैं
इसी पे वास्ता है सुबह और शामों का
कई जगह रुका अगर जो थक गया हूँ तो
मगर मंजिल ले लिए तेज कदम आया हूँ

नहीं परवाज मेरे ना ही कोई दस्ता है
अभी ऐसे ही मगर "उसके" साथ चलना है
देखता हूँ वो कब तलक नजर नहीं आता
मैंने ठाना है एक सूरज नया बनाना है
 

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