Tuesday 22 May 2012

हे कान्हा क्यों प्रेम किया जब अंत में साथ निभाया नहीं था,,,( पुकार )


हे कान्हा क्यों प्रेम किया जब अंत में साथ निभाया नहीं था,,,( पुकार )

by Suman Mishra on Friday, 27 April 2012 at 01:21 ·


हे ! कान्हा क्यों प्रीत किया जब अंत में साथ निभाया नहीं था
आज अधूरी प्रेम की भाषा , शब्द को पूर्ण बनाया नहीं था
सब विह्वल मति प्रेम के प्यासे, खुद को कन्हैया बनाया ही क्यों था
राधा तो प्रेम दीवानी रही पर मीरा को सपना दिखाया ही क्यों था

प्रेम नहीं परिपूर्ण कहीं भी ,शब्द अधूरा जग में है पसरा
खुद की ही माया ,खुद की छाया, खुद का  ही रूप सजाया ही क्यों था
कौन है मोहन कौन है राधा , इस जग को भरमाया ही क्यों था
हम तो पुजारी थे नयन के पीछे से रूप की लौ को जलाया ही क्यों था


एक तेरो बांसुरी , एक तेरी तान सुनी
मोहन की मोहिनी या मोहित सब ग्यानी मुनि
लहर जो जमुना किनारे चली आयी रही
तान अठखेली सी दिखाए नृत्य बावरी

कबहूँ मधुरिमा की  बेला सी कुंवारी लागे
कबहूँ सुहागन की सिंदूर लाली सी
अधरंन सजी तान छेड़ी जब कन्हैया ने
विह्वल हरिणी सी प्रेम की दीवानी जागे




प्रेम की ये माया प्रभु प्रेम से ही पूर्ण करो
काहे ई अधूरी बात जग को लुभाए हो
जाने कितने रूप में हो रूप को बखान नहीं
प्रेम में ही अग्नि की शिखा क्यों लगाए हो

प्रेम आज द्वेष भरा, नहीं कोई द्वार खुला
प्रेम के पुजारी खड़े दीपक जलाए हैं
आज तुम पुकार सुनो मेरी तरह प्रेम गुनो
सारथि तुम्ही तो आज प्रेम रथ चलाये हो


मन ये उद्दिग्न आज, टूट गए सारे साज
राग तान सुर और ताल सभी तो अधूरे हैं
ज्ञान नाही मान नाही, तन में अब प्राण नाही
एक रूप प्रेम थारो , बाकी तो लुटेरे हैं

छोड़ दियो राज पाट, मिथ्या ना कोनो बाट
अब तो है खाली हाथ , अब तो तुम आओगे
मेरी ये पुकार आज खाली नहीं जाए प्रभु
एक प्रेम राधे का ही प्रेम छोड़ आओगे,,,

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