Tuesday 22 May 2012

फूल और पत्थर


फूल और पत्थर

by Suman Mishra on Wednesday, 21 March 2012 at 00:00 ·


प्रकृति अजीब सी है फूल और पत्थर की
अजब सा मेल है इनका मगर ये सच्चा है
मियाद उम्र की थोड़ी सी जादा पत्थर की
मगर रिश्ता भी इनका फूलों से गहरा है

असर तो दोनों पे है चाँद और सूरज का
ओस और बादलों ने भी है आजमाया इन्हें
मगर ये दोस्ती की बात कहाँ दूर तलक
ये तो फितरत है इन्हें साथ लेके जाएगा,



ना जाने कौन सा रिश्ता है फूल और पत्थर का
ना जाने क्या कशिश की पत्थरों पे फूल चदे
दोनों के भाव अलग एक सजे हाथो से
एक को ठोकरों में लोगों के पग मात करे


प्रकृति आपदा के दोनों ही शिकार बने

प्रकृति से जुड़े है आसरों के सार बने
इन्ही पत्थर की दीवारे और फूल है दिल पर
कभी ये फूल ही पत्थर दिलो के हार बने

कही गुमराह सा राहों पे पडा इधर उधर
मिली जो ठोकरें तो तन की मेल साफ़ हुयी
पडी बारिश की बूँद झलक गया रूप अभी
आज किसने ये पंखुरी से मुझे याद किया


कल तलक बात मेरी बड़ी ही कठोर सी थी

आज स्पर्श से जाने अजब एहसास मिला
एक अनुभूति ही है आज इसकी खुशबू की
मैं एक बेरहम बस देवता बनाया इसने,.

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