Wednesday 28 March 2012

येही है सिलसिला तिजारत का

कई है नाम जिन्दगी में करीबी रिश्तों के
सभी रिश्तों में तिजारत का नाम होता है
कही बिकते है और कोई खरीद ले जाता है
एक ही पल में ये रिश्ते यहाँ बदलते हैं

एक छोटी सी तितली फूल से रिश्ता रख ले
कल कोई फूल तोड़ कर के बेच आयेगा
पलक झपकी नहीं और एक कली फूल बनी
कोई तितली से रिश्ता वो निभाएगा ??

सभी मशगूल हैं अपने यहाँ बाजारों में
कही बिकती है दुल्हन यहाँ  रुखसारों में
एक घूघट से कोई दुल्हनो का वेश धरे
कल तो घूमी यहाँ ऐसे खुले बाजारों में,,,

फरेब और तिजारत सभी मखौल  यहाँ
कई रिश्तों की कहानी नहीं ये दास्ताँ है
हमने पढ़ तो लिया उसके मजमूनो से
मगर बाजार अब भी शख्स बेचा करता है,

Tuesday 13 March 2012

आज चाँद का रंगीन होना इत्तेफाक था ?


आज चाँद का रंगीन होना इत्तेफाक था ?

by Suman Mishra on Friday, 9 March 2012 at 13:09 ·


इतने रंग उछालो की चाँद भी रंगीन हो जाए
एक छोटा सा जुर्म सब करें  की ,,,
मामला संगीन हो जाए


उसकी दिलकश सी हंसी का मतलब ?
मेरी समझ से तो परे है
कुछ गुल बहारों के
कुछ बालों में लगे ,,मामला हसीन हो जाए



पानी की परतों पर हल्की सी चांदनी का सरूर
सिलवटों पर रोशनी का रुक रुक कर आना जाना

तन्हाई की शाम का जैसे कोई रंग नहीं होता
मगर ये अचानक की बारिश और ???

महका है मन क्योंकि गुलों का धुल जाना


कुछ देर तक अठखेलियाँ लहरों के संग यूँ
पर चाँद का रंगीन होना है कहाँ मंजूर
वो तो निखर ही आयेगा चांदनी के आते ही
ये अक्स है किसी का या रंग भा गए हैं जरूर



आँखों पे लगे चश्मे से आँखों को ढक दिया

पर रंग तो बस चाँद भी रंगीन हो गया
हमपे जो चढ़ा रंग वो तो छूटते नहीं
शबनम ने धुला चाँद को सफ़ेद हो गया 


रंगीन सियाही यहां कितनी है गिराई
पर जख्म तो हरे ही रहे उसके हमेशा
ले दाग अपने सीने पे देता है चांदनी
कोशिश उसे रंगने की कामयाब हो गयी

गुलमोहर या टेसू बिखरे फूल नहीं बस रंग ही रंग,,,हों


गुलमोहर या टेसू बिखरे फूल नहीं बस रंग ही रंग,,,हों

by Suman Mishra on Wednesday, 7 March 2012 at 00:07 ·


अंखियन को मूँद मूँद , बीच और बचाव में
रंग सारे बिखर गए , चेहरे के भाव में
प्रीति की जो डोर मेरी नैनो में तीरे रहे
देख लिया तुमने कब , इस मन के लगाव में

छन से समाय गयी, बांकी छवि मोहन की
तान रही मुरली की, अधर के ललाई में
आय गयी होरी तो नैनन के बान चले,
तन रंग रंग वो तो मन में लुकाय गयी.
 
विरहिन की होली का रंग अलग कैसे कहूं
दूर दूर फलक जाकी अँखियाँ समाय गयी
रस्ता सब खाली है, पथिक ना बटोही कही
पिया कब आयेंगे , अंसुवा सुखाय गवा


नौकरी अमोलन की , प्रीति नाही मोल कोई
सखियन ठिठोली से मनवा विसराय गवा
धूर उडी देखूं तो कौन पथिक आवत है
आवत है लागत है, टेसू  मुसकाय गवा
 

रंगों की डाली पे रंगों के फूल खिले,
रंग हुए भारी से, डाली अलसाय गयी
झूला जो डार दियो, पेंग मारो  वेग ज़रा
रंगन की पोटली खोल के उडाय दिया.

एक दिन की बात और रंग की सौगात मिली
रंग नहीं छूटेंगे , पक्का लगाय दियो
जीवन का मधुर गान रंगों का हो भान
सबको ही बाँट बाँट एक सुर बनाय लियो,

रंगों की वो एक बांसुरी...धार धार बस रंग ही बरसे


रंगों की वो एक बांसुरी...धार धार बस रंग ही बरसे

by Suman Mishra on Sunday, 4 March 2012 at 15:01 ·

रंगों की एक धार बांसुरी , धार धार बस रंग ही बरसे
मन तो महका कब से उसके प्रेम गुलाल लगे जब तन पे
नहीं है छूटा वो रंग उसका जो उसने था यूँ ही लगाया
बरखा की बूंदों में बहकर खुश हो गया धरा को रंगकर 

दीपों से मन दीप्ति हुआ जब रंग लगे तो और ये निखरा
अब तो आगे पथ हम पीछे, जहां ले चले मुझको रस्ता
बहका बहका मन क्यों पागल, नहीं रंगों अब जाने भी दो
मधुरिम स्वर ये तान बांसुरी रंग नहीं कुछ तान छेड़ दो



वो अम्बर और मैं हूँ धरती रंगों की बारिश होने दो
तिश्नित मन है मेरा कबसे, उसे बरसकर कुछ कहने दो
नाम नहीं लेना बस मेरा  मैं मतवाली हुयी बावरी
मीरा या राधा की कह लो, हरा रंग वासंती कर दो,,,


तन से होली मन से होली अब तो बख्शो इस रंगों को
फूल नहीं हम रच कर रचना डालों पर यूँ लग जायेंगे
मधु पराग ले भोंरे गुंजन रंगों की अनमोल कहानी
बरसेगा अम्बर से बादल , दो देगा सब रंग जुबानी,,,

भूख


भूख

by Suman Mishra on Monday, 27 February 2012 at 23:55 ·

ये भूख शब्द मर्मान्तक है , हर पथ पर ये एक आहट है,
इससे बचना कितना मुश्किल, ना हो तो थोड़ी राहत है
तन मन की भूख कौन देखे,वो तो निर्गुण सी बहती है
इसके हर शब्द में शक्ति बहुत, ये रक्त प्रवाहित करती है

मुट्ठी खाली तो भूख कैसी मन को मारो और सो जाओ,
इसके आगे तो कुछ भी नहीं, मन को धोखा देते जाओ
ये भूख और मन कुछ तो है, क्या दृढ़ता प्रबल नहीं उसकी
आत्मिक,सात्विक शक्ति ह जब पर भूख मिटे तब चछु खुले





इन तरसी आँखों के सपने, हर दिन एक ठौर कहीं ना कही,
जीवन फिरता एक पत्ते सा, भरता है पेट कभी इनका,
जब जनम लिया इस धरती पर ,बस एक और जीवन आया
स्वप्नों की ली तालीम यहाँ, आंसू स्याही से लिख पाया

बस एक हताशा और ये तन यूँ साथ साथ बस चलते हैं
ना फिकर कहीं कोई इनको, शब्दों की मार ये सह लेंगे,
है कड़ी धुप और तपते ये,सोना कुंदन सा वज्र देह
बस एक पिपासा झलक गयी, ये बड़े लोग पर हम क्या हैं



ठठरी सा तन निर्बल जीवन ये हार नाम है जीवन का,
बस रोग मिला है भूख से ही, कुछ समय बचा अब इस तन का
कहने को मेहनत कर लेंगे, पर मेहनत का फल कहाँ मिला
सब लूट गए मेहनत इनकी ये साँसों से लड़ता ही रहा

अधिकार शब्द क्या होता है, ये उसके अंतर्गत में हैं
बस  पेट और उसकी ज्वाला के दमन शमन में रहते हैं,
हर वर्ग की भूख अलग होती कुछ तन के बहशी यहाँ वहाँ
फैले हाथों को आगे कर,बस भूख और कुछ नहीं यहाँ.

कल पलाश का फूल मिला था


कल पलाश का फूल मिला था

by Suman Mishra on Friday, 2 March 2012 at 23:21 ·

 सुबह की लाली आने को थी , पूरब से उजास की दस्तक
चाँद टिका था छत  पर ऐसे , जैसे दिन का सफ़र करेगा
तारों की बारात लिए वो टांक रहा था नरम दुशाले
फिर भी रंगों की साजिश है कोई रंग नहीं दिखता

मेरे क़दमों की जुम्बिश भी सुबह की खातिर तेज हो गया  
बरसेगा लेकर अंगारे  , सूरज से मतभेद हो गया  ,
हलके से बादल और उस पर रंग के छींटे सुर्ख हो गए
झील के पानी में अक्सों का चेहरा भी लबरेज हो गया,


पेड़ों की छावों का असर सुबह नहीं होता है ऐसे
लाल सुर्ख अंगारों जैसे ये पलाश के पुष्प हैं जैसे,
इनके रंगों से पटती है धरती  पूरी लाल हो गयी
नहीं हैं ये पारिजात अगर तो देव सी धरती साथ हो गयी

सुंदरता की इस आभा से सूर्य का रंग भी फीका फीका
उसके प्रखर तेज में बढ़ता अग्नि का घेरा अग्नि सरीखा
एक कुसुम हाथो में लेकर उसकी शीतलता तो छु लो
माना ये जो रूप ज्वलित है स्पर्शित कर अंकों में भर लो



मेरे बढ़ते कदम ठिठकते पूछा मैंने उससे बोलो
ये क्या इतने सुंदर हो तुम फिर भी धरती पर यूँ फैले
लोग फूल से  यौवन के आभूषण गुथते जाने कितने
तुम ऐसे ही अग्नि शिखा से पड़े हुए यूँ बीचे हुए से

थोड़ा मुस्काया हलके से पर कुछ दर्द था उसके मन में
पडी ये धरती परती परती सूर्य की किरणों के आँगन में
मैंने भी ये प्रण है रखा नहीं चढूगा मस्तक पे मैं
जो जननी है अलंकार बन सजूंगा उस के तन मन पर मैं