वो लेखाकार हमारा है
मैं अभिभूत नहीं हूँ वादों से
परिणाम जो उसपे छोड़ा है
मैं कर्म करू हर पल हर क्षण
वो लेखाकार हमारा है
वो जीवन देकर अंतहीन
भ्रमरो सा मन कर देता है
उसकी अथाह इस सत्ता में
कस्तूरी मृग मैं भटक रहा
वो अटल रहा ध्रुव तारे सा
हम डगमग हर पल होते हैं
फिर भी आश्वस्त हूँ आज तलक
अंतिम निर्णय वो ही तो लेता है
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