मैं मन तडाग में विहर रहा,
जल राशि नहीं बस रज ही रज
मैं पथिक दिवास्वप्नो का हूँ
ले जाऊंगा गठरी में रोप
दे दूंगा भूखे बच्चों को
गठरी की गाँठ है तनिक कठिन
उनके दुर्बल से हाथ मलिन
खोलेंगे अथक परिश्रम से
कुछ भाव हीन, कुछ मर्म बंधे
मुखरित होंगे उनके मुखपर
पर आशा होगी विस्फारित
नयनो से अधर तक एक बोल
फिर वही निमंत्रण निशा मौन
चांदनी और किरणों के मोल
फिर एक विहान पुकारेगा
चल आज कहीं तू स्वर्ण खोज
जल राशि नहीं बस रज ही रज
मैं पथिक दिवास्वप्नो का हूँ
ले जाऊंगा गठरी में रोप
दे दूंगा भूखे बच्चों को
गठरी की गाँठ है तनिक कठिन
उनके दुर्बल से हाथ मलिन
खोलेंगे अथक परिश्रम से
कुछ भाव हीन, कुछ मर्म बंधे
मुखरित होंगे उनके मुखपर
पर आशा होगी विस्फारित
नयनो से अधर तक एक बोल
फिर वही निमंत्रण निशा मौन
चांदनी और किरणों के मोल
फिर एक विहान पुकारेगा
चल आज कहीं तू स्वर्ण खोज
No comments:
Post a Comment