वो मुड़ा तुड़ा सा ख़त सही
कुछ यादें इसमें कैद है
ये रहेगी अंतिम सांस तक
इसे खुलने से परहेज है
कभी मन हुआ तो सोचकर
कभी मन हुआ तो देखकर
क्या लिखा है इसमें यादकर
जह्नो में बस अवशेष है
कभी उड़ गया परिंदे सा
कभी खो गया हेर फेर में
मेरे दिल का टुकडा छुपा हुआ
मेरी जिन्दगी का भेद है
कभी अक्स आता उभर उभर
चाहे दिन हो या हो दोपहर
कभी रात के अँधेरे में
शब्दों से मिल मुझपर असर
मैं रहूँ अगर इस शहर में
ये रहेगा मेरे इर्दगिर्द
ये मुड़ा तुड़ा सा ही ख़त सही
मेरे मन के बहुत करीब है
सुंदर प्रस्तुति..!!!
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