कई है नाम जिन्दगी में करीबी रिश्तों के
सभी रिश्तों में तिजारत का नाम होता है
कही बिकते है और कोई खरीद ले जाता है
एक ही पल में ये रिश्ते यहाँ बदलते हैं
एक छोटी सी तितली फूल से रिश्ता रख ले
कल कोई फूल तोड़ कर के बेच आयेगा
पलक झपकी नहीं और एक कली फूल बनी
कोई तितली से रिश्ता वो निभाएगा ??
सभी मशगूल हैं अपने यहाँ बाजारों में
कही बिकती है दुल्हन यहाँ रुखसारों में
एक घूघट से कोई दुल्हनो का वेश धरे
कल तो घूमी यहाँ ऐसे खुले बाजारों में,,,
फरेब और तिजारत सभी मखौल यहाँ
कई रिश्तों की कहानी नहीं ये दास्ताँ है
हमने पढ़ तो लिया उसके मजमूनो से
मगर बाजार अब भी शख्स बेचा करता है,
अंखियन को मूँद मूँद , बीच और बचाव में
रंग सारे बिखर गए , चेहरे के भाव में
प्रीति की जो डोर मेरी नैनो में तीरे रहे
देख लिया तुमने कब , इस मन के लगाव में
छन से समाय गयी, बांकी छवि मोहन की
तान रही मुरली की, अधर के ललाई में
आय गयी होरी तो नैनन के बान चले,
तन रंग रंग वो तो मन में लुकाय गयी.
विरहिन की होली का रंग अलग कैसे कहूं
दूर दूर फलक जाकी अँखियाँ समाय गयी
रस्ता सब खाली है, पथिक ना बटोही कही
पिया कब आयेंगे , अंसुवा सुखाय गवा
नौकरी अमोलन की , प्रीति नाही मोल कोई
सखियन ठिठोली से मनवा विसराय गवा
धूर उडी देखूं तो कौन पथिक आवत है
आवत है लागत है, टेसू मुसकाय गवा
रंगों की डाली पे रंगों के फूल खिले,
रंग हुए भारी से, डाली अलसाय गयी
झूला जो डार दियो, पेंग मारो वेग ज़रा
रंगन की पोटली खोल के उडाय दिया.
एक दिन की बात और रंग की सौगात मिली
रंग नहीं छूटेंगे , पक्का लगाय दियो
जीवन का मधुर गान रंगों का हो भान
सबको ही बाँट बाँट एक सुर बनाय लियो,
रंगों की एक धार बांसुरी , धार धार बस रंग ही बरसे
मन तो महका कब से उसके प्रेम गुलाल लगे जब तन पे
नहीं है छूटा वो रंग उसका जो उसने था यूँ ही लगाया
बरखा की बूंदों में बहकर खुश हो गया धरा को रंगकर
दीपों से मन दीप्ति हुआ जब रंग लगे तो और ये निखरा
अब तो आगे पथ हम पीछे, जहां ले चले मुझको रस्ता
बहका बहका मन क्यों पागल, नहीं रंगों अब जाने भी दो
मधुरिम स्वर ये तान बांसुरी रंग नहीं कुछ तान छेड़ दो
वो अम्बर और मैं हूँ धरती रंगों की बारिश होने दो
तिश्नित मन है मेरा कबसे, उसे बरसकर कुछ कहने दो
नाम नहीं लेना बस मेरा मैं मतवाली हुयी बावरी
मीरा या राधा की कह लो, हरा रंग वासंती कर दो,,,
तन से होली मन से होली अब तो बख्शो इस रंगों को
फूल नहीं हम रच कर रचना डालों पर यूँ लग जायेंगे
मधु पराग ले भोंरे गुंजन रंगों की अनमोल कहानी
बरसेगा अम्बर से बादल , दो देगा सब रंग जुबानी,,,
ये भूख शब्द मर्मान्तक है , हर पथ पर ये एक आहट है,
इससे बचना कितना मुश्किल, ना हो तो थोड़ी राहत है
तन मन की भूख कौन देखे,वो तो निर्गुण सी बहती है
इसके हर शब्द में शक्ति बहुत, ये रक्त प्रवाहित करती है
मुट्ठी खाली तो भूख कैसी मन को मारो और सो जाओ,
इसके आगे तो कुछ भी नहीं, मन को धोखा देते जाओ
ये भूख और मन कुछ तो है, क्या दृढ़ता प्रबल नहीं उसकी
आत्मिक,सात्विक शक्ति ह जब पर भूख मिटे तब चछु खुले
इन तरसी आँखों के सपने, हर दिन एक ठौर कहीं ना कही,
जीवन फिरता एक पत्ते सा, भरता है पेट कभी इनका,
जब जनम लिया इस धरती पर ,बस एक और जीवन आया
स्वप्नों की ली तालीम यहाँ, आंसू स्याही से लिख पाया
बस एक हताशा और ये तन यूँ साथ साथ बस चलते हैं
ना फिकर कहीं कोई इनको, शब्दों की मार ये सह लेंगे,
है कड़ी धुप और तपते ये,सोना कुंदन सा वज्र देह
बस एक पिपासा झलक गयी, ये बड़े लोग पर हम क्या हैं
ठठरी सा तन निर्बल जीवन ये हार नाम है जीवन का,
बस रोग मिला है भूख से ही, कुछ समय बचा अब इस तन का
कहने को मेहनत कर लेंगे, पर मेहनत का फल कहाँ मिला
सब लूट गए मेहनत इनकी ये साँसों से लड़ता ही रहा
अधिकार शब्द क्या होता है, ये उसके अंतर्गत में हैं
बस पेट और उसकी ज्वाला के दमन शमन में रहते हैं,
हर वर्ग की भूख अलग होती कुछ तन के बहशी यहाँ वहाँ
फैले हाथों को आगे कर,बस भूख और कुछ नहीं यहाँ.