गुलमोहर या टेसू बिखरे फूल नहीं बस रंग ही रंग,,,हों
by Suman Mishra on Wednesday, 7 March 2012 at 00:07 ·
अंखियन को मूँद मूँद , बीच और बचाव में
रंग सारे बिखर गए , चेहरे के भाव में
प्रीति की जो डोर मेरी नैनो में तीरे रहे
देख लिया तुमने कब , इस मन के लगाव में
छन से समाय गयी, बांकी छवि मोहन की
तान रही मुरली की, अधर के ललाई में
आय गयी होरी तो नैनन के बान चले,
तन रंग रंग वो तो मन में लुकाय गयी.
विरहिन की होली का रंग अलग कैसे कहूं
दूर दूर फलक जाकी अँखियाँ समाय गयी
रस्ता सब खाली है, पथिक ना बटोही कही
पिया कब आयेंगे , अंसुवा सुखाय गवा
नौकरी अमोलन की , प्रीति नाही मोल कोई
सखियन ठिठोली से मनवा विसराय गवा
धूर उडी देखूं तो कौन पथिक आवत है
आवत है लागत है, टेसू मुसकाय गवा
रंगों की डाली पे रंगों के फूल खिले,
रंग हुए भारी से, डाली अलसाय गयी
झूला जो डार दियो, पेंग मारो वेग ज़रा
रंगन की पोटली खोल के उडाय दिया.
एक दिन की बात और रंग की सौगात मिली
रंग नहीं छूटेंगे , पक्का लगाय दियो
जीवन का मधुर गान रंगों का हो भान
सबको ही बाँट बाँट एक सुर बनाय लियो,
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