Tuesday, 13 March 2012

रंगों की वो एक बांसुरी...धार धार बस रंग ही बरसे


रंगों की वो एक बांसुरी...धार धार बस रंग ही बरसे

by Suman Mishra on Sunday, 4 March 2012 at 15:01 ·

रंगों की एक धार बांसुरी , धार धार बस रंग ही बरसे
मन तो महका कब से उसके प्रेम गुलाल लगे जब तन पे
नहीं है छूटा वो रंग उसका जो उसने था यूँ ही लगाया
बरखा की बूंदों में बहकर खुश हो गया धरा को रंगकर 

दीपों से मन दीप्ति हुआ जब रंग लगे तो और ये निखरा
अब तो आगे पथ हम पीछे, जहां ले चले मुझको रस्ता
बहका बहका मन क्यों पागल, नहीं रंगों अब जाने भी दो
मधुरिम स्वर ये तान बांसुरी रंग नहीं कुछ तान छेड़ दो



वो अम्बर और मैं हूँ धरती रंगों की बारिश होने दो
तिश्नित मन है मेरा कबसे, उसे बरसकर कुछ कहने दो
नाम नहीं लेना बस मेरा  मैं मतवाली हुयी बावरी
मीरा या राधा की कह लो, हरा रंग वासंती कर दो,,,


तन से होली मन से होली अब तो बख्शो इस रंगों को
फूल नहीं हम रच कर रचना डालों पर यूँ लग जायेंगे
मधु पराग ले भोंरे गुंजन रंगों की अनमोल कहानी
बरसेगा अम्बर से बादल , दो देगा सब रंग जुबानी,,,

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