मेरे घर का रास्ता
by Suman Mishra on Thursday, 18 October 2012 at 17:36 ·
बहुत लम्बी दूरी , बहुत लंबा रास्ता, एक उम्र का फासला,एक मुकाम बिलकुल अलग सा
वहाँ माँ की गोद थी, यहाँ कड़ी धुप है. कितना बदला हुआ जीवन दूरियों के बीच,
सूरज और धरती का रुख भी अलग अलग सा, जीवन का रहन सहन बदल सा गया है, मैं मैं नहीं हूँ , हम क्या बदल गए हैं ?
वो सूरज था लाल सुनहरा ,
थोड़ा थोड़ा अलसाया सा
जाने कितनी थीं मनुहारें
फिर उठना दिल बह्लाबा सा
वो धरती थी कच्ची पक्की
सोंधी मिटटी की खुशबू सी
चुपके से चख मुंह धो लेना
बचपन गलियाँ तंग हठीली
हिलते डुलते पुल नहरों के
चम् चम् मछली उछल उछल कर
हम चढ़ कर अपनी धुन में ही
आ जाते खुद को टहलाकर
सांझ की गहरी काली बदली
मन के अन्दर आँख मिचौली
कौन रुकेगा घर के अन्दर
भाग निकल भर बूँद से झोली
ये जो शहर है नहीं है मेरा
मैं स्वतंत्र पर बंधा है साया
मेरे मन को खींच रहा है
जकड़ा तन थोड़ी सी माया
अभी बेड़ियाँ पडी है मेरे
खुल जायेंगी धीरे धीरे
मेरे नाम का अर्थ बदलेगा
अभी नहीं ,,,घर आ जाने दो,,,,,,
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