पलकों के पीछे का जीवन कितना सच्चा कितना झूठा ( PART 2 ) "युवा मन"
by Suman Mishra on Monday, 1 October 2012 at 01:45 ·
कहीं अरमानो की कश्ती
मल्लाहों ने चलाई है
वो गुमसुम सा जहां अपना,
जहां लौ बुझ ना पायी है
ना जाने आँधियों का रुख
हमेशा इस तरफ ही क्यों
मगर हम भी कहा कम थे,
ना आंसू ना दुहाई है
अभी तो हम ने जाना है
ये दुनिया कैसे चलती है
कभी रातें भी दिन जैसी
निशा में धुप ढलती है
सभी मर्जी के सौदे हैं ,
तिजारत में हिकारत है
कोई सच्चा भी कितना
नहीं उसकी इबादत है
यहाँ हर्फों में सब मसले
नहीं उसकी मियादें कम
कहा कुछ उसने ऐसे ही
ख़तम सब एक वादे में
कोई गठरी बड़ी सी है
सूखे पत्तों के बोझे सी
मगर सपनो की ख्वाहिश में
येही बन जाए सोने की
बढे क़दमों को मत रोको
यकीं है रात भी होगी
कटेगा बाकी का रास्ता
खुद से कुछ बात भी होगी
कही पे लौटते से कुछ
निशाँ दीखेंगे मत रुकना
तुम्हारे पाँव आगे हैं
पीछे छूटेगा हर रस्ता
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