पलकों के पीछे का जीवन कितना सच्चा कितना झूठा ( PART 4 ) - जर्जर हाथों की ताकत सदियों से ये पहचान बनी (वृध्हा अवस्था)
by Suman Mishra on Wednesday, 3 October 2012 at 00:05 ·
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इतिहास नहीं पढ़ पाए तो , मेरी आँखों में देखो तुम
सारा चलचित्र दिखेगा यूँ, जा पहुचोगे उस युग में तुम
इन जज्जर हाथों की ताकत, तुम आज कहाँ पहचानोगे
जाकर बांधो मुठी को तुम , कुछ स्वेद से भीग तो जाने दो !!
बूढी आँखों के सपने थे या आज तलक वो आँखों में
बस एक रूप शिल्पी सा ही, छैनी की खनक जज्बातों में
कोई दे सहारा मैं उठकर चल दूं फिर से अपने पथ पर
मैं शिलालेख ना बन जाऊं , गतिमान रहूँ हर पल में मैं
मैं जागा हूँ कितनी रातें, सपनो की भरपाई ना हुयी
फूलों के बाग़ की सैर नहीं, सूरज की किरण पीछे ही जगी
हर दिन के कर्म की सूची में , खातों की दावेदारी अपनी
हर बूँद रक्त की एक कथा, मैं नहीं वृध्ह मैं युग गाथा
आओ मिलकर लौटा लायें यंत्रों तंत्रों का दौर नया
तुम समझ सको गर जो मुझको , समझा दूं अपनी आज व्यथा
मेरे सपने जो छितिज पार, आकर धरती को छूते हैं
तुम इंद्र धनुष इतने रंग के ,कुछ पल ही भ्रम के फीते हैं
इन बूढी आँखों की आशा का मर्म, एक प्रथा आज अपनानी है
कुछ दूर रोशनी के धागे, कुछ तुमको राह दिखानी है
वो स्वाभिमान से जिया मगर, हाथों का सहारा फिर भी दो
उसकी छवि खुद में आत्मसात, उसके ही नाम से जी ने दो
कुछ बूँद अगर आंसू के गर आकर वापस जो चले गए
मन दुखी नहीं चीत्कार करे, कैसे वो अश्रु मन सींच गए
हम भी इस अंक से पले बढे , कैसे इनको भरमायें हम
हम इनसे हैं ये हमसे नहीं , सपने पूरा कर पायें हम
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