कलम आज क्यों मौन पडी है
by Suman Mishra on Wednesday, 18 July 2012 at 11:42 ·
कलम आज क्यों मौन हो गयी
बिन तरकश के द्रोण हो गयी
अर्जुन ने बदला जो पाला
आशा धरती से ब्योम हो गयी
चित्र लिखित सी रह जाती है
द्रश्यों का एक पटल बनाकर
क्यों सजीव की आशा मथती
रुक कर आगे डग ना भरती
लिख जो बोल बने जन जन के
मन और प्राण पगे शब्दों से
शब्दों से जो बाण चलेंगे
धधक उठेंगे मुख पर्वत के
कहीं ज्वलित दावानल होगा
अरि की घात , प्रपात गिरेगा
कहीं पुष्प से महक चुराकर
हवा बहे मन सुरभित होगा
कही ठगी सी रुक कर सोचे
क्या लिखना है मुझसे पूछे
माँ की ममता या वो बचपन
लिख दू क्या उसका अपनापन
अरी ! कलम मत सोच अभी तू
बढ़ती जा धवलित पन्नो पर
इन शब्दों में बाँध बज्र को
फेंक शलाका अरि मस्तक पर
लिख जो इश्वर के मन भाये
एक पुकार वो दौड़ा आये
शब्दों में बस वही दिखेगा
जिसको अर्पित मन ये लिखेगा
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