बरखा रानी जरा झूम के बरसो...अब समझ में आया इस बारिश का जादू
by Suman Mishra on Saturday, 7 July 2012 at 00:35 ·
बरखा रानी जरा झूम के बरसो....ये गीत अक्सर सूना है पुराने गीतों के संग्रह से
मगर ,,महानगरों की बर्षा वो बर्षा नहीं जिसका आनद लिया जा सके , शायद हंसेगे
आप लोग,,,,कहने का मतलब ये है...सुबह तो कभी आती ही नहीं , चटकीली धुप,
आराम से निकलो फाइलों के बीच सर खपाने , मगर शाम होते ही जैसे ही फाइलों से सर बाहर
और आसमान को देखा तो रंगत ही बदली नजर आएगी..मगर क्या करना है दो पहिया ,
चार पहिया , छे पहिया वाहनों के बीच से बारिश की फुहारों के बीच , आधी सड़कों पर पानी
के रेले को धकेलते हुए घर तो पहुचना ही है...और जब रविवार आता है तो उस दिन सूर्य
महाराज गायब और और बारिश का अंदाजे बयां जारी....जाने क्या दुश्मनी है बड़ी
आधुनिक बरसात है यहाँ ...मगर बरसो मेघों यहाँ दछिन भारत में तो बरसाती नदिया
ही हैं , नहीं बरसोगे तो क्या होगा जन जीवन का,
आज समझे क्या है मतलब जल नहीं जीवन है ये
हे पवन थम कर ज़रा इन बादलों को रोक लो
बरसने दो जम के इनको , धरा रुखी सूखती
खींचते हैं जल निरंतर , खोजना पड़ता है अब
कुए सूखे पडे कबसे , गर्त के परिवेश से
आज समझे क्या है मतलब जल नहीं जीवन है ये
मत बहाओ यूँ निरर्थक, बूँद इसकी कम जो है
खेल पानी के थे खेले , अब नहीं संभव यहाँ,
पाँव जलते हैं धरा पर, प्यास दर्शाती है माँ
हर तरफ पानी की बातें, क्या नहीं निदान है ?
जाने कितने लोग प्यासे मर रहे अनुमान है ?
बचपने की बात छोड़ो , छतरियों को तान लो
आई ना बरसात फिर तो धुप का उपहार लो
लम्बी स्कूल की छुट्टियों के बाद जब हम स्कूल की तरफ नयी किताबों
की सुगंध में सराबोर होने को आतुर होते थे तो ये बरसात सब मजा किरकिरा कर
देती थी और कई दिन वापस घर में बोर होना पड़ता था मगर उन भावनाओं से
यथार्थ का क्या लेना देना ,,,सत्य तो ये है की आज लोग हाल चाल से पहले मौसम
कैसा है जरूर पूछते हैं और येही जीवन में सबसे महत्व पूर्ण प्रश्न बन गया है ..
पानी से बिजली....बस इतना ही कहना काफी है...हलक तक पहुँचाना
मुश्किल हो रहा है तो बिजली कहाँ से सोचेंगे,,,अगर ऐसा ही रहा आगामी
दिनों में ,,,कृत्रिम बादल....बरखा और इंसान भी मशीनों के ही होने लगेगे,,,,
वो देखो बादल का टुकड़ा ,
तैर रहा है जाने कबसे
जाने कितनी शकल बनाता
हंसता है और मुंह को चिढाता
उसे कहाँ चिंता है हमारी
धरती फटती जर्जर सारी
आज ज़रा नत मस्तक होकर
सोचें बूंदों की हो क्यारी
उग जायेगी बूँदें उनमे
शोख रंग सब झिलमिल सपने
तोड़ेंगे हम अल सबेरे
ले आयेगे भरकर झोले
और अंत में इस दुर्लभ चित्र को देखिये, चित्रकार ने कितनी ख़ूबसूरती से वर्षा के आगमन को चित्रित किया है..
दामिनी की चमक चमकी
स्वर्ण सी बूंदों में ढलती
पग बढ़ा तू वेग से अब
देख बरखा कितनी बरसी
खेत सारे भर गए हैं
दादुरों के स्वर नए हैं
चल चलें पैगाम सुन ले
सूखी धरती नम हुयी है..
आ गयी बरखा सुहानी
पत्तों के रंग हुए धानी
एक मग कोफी का लेकर
आज ऑफिस "SAY NO दीवानी "
No comments:
Post a Comment