Friday, 10 August 2012

कराहती भूख और जज्बा ये जिन्दगी का

कराहती भूख और जज्बा ये जिन्दगी का

by Suman Mishra on Saturday, 21 July 2012 at 01:03 ·

माना की अभिनय जरूरी है
उस दृश्य को जीने के साबके के लिए
कैसी सोना पड़ता है भूखे पेट
नीद आये भी तो आये  कैसे ,

कभी नाराजगी में खाना नहीं खाया मैंने
मगर वो भूख थी की बढ़ती चली आ रही थी
और ये बच्चे जिनके छत का आसरा भी नहीं
भूख का सामना ये दर बदर हो कर लेते हैं


आज हम तौलते है शब्दों में वजन भर भर कर
मगर क्या देश में कातर निगाहें कम हो गयीं
ज़रा पूछो उनसे क्या तुमने पढ़ा है मुझको
बेरुखी झट से अपने हाथ को फैला देगी


एक कतरा जो गिरा मोती सा
जाने कितने यूँही बिखर के सूख गए
ले आओ सीपियाँ ज़रा समुन्दर से
उसी में रोप लेंगे कुछ तो ठौर मिल ही गया

कौन कहता है हमें दर्द का पता ही नहीं
ये तो अभिनय ही है हम मस्त नज़र रखते हैं
मगर जब आँखों के परदे गिरे अंधरे में
उनके घर टिमटिमाती सी रौशनी पे अशर लिखते है


Alice Lo
बड़ी अजीब सी आवाज इन  कराहों की
हर गली नुक्कड़ों पे ये जो मंजर दीखते हैं
अजब सी दुनिया और उनमे शामिल हम भी है
आँख पे चश्मों की परतों के पीछे छुपते हैं

नहीं कभी नहीं की दर्द का पता ही नहीं
हमने भी दर्द के तदवीर में  काटी रातें,
मगर ये भूख के आलम में पलते इंसा नुमा
गजब का हौसला जज्बा जिगर में रखते है

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