खुशबुए चमन ,,,
by Suman Mishra on Sunday, 29 July 2012 at 14:56 ·
शब्दों ने मुझे फूल कहा , गुलशन का गुल कहा
मगर अभी तो मैं फूल बेचने में मशगूल हूँ
कुछ पैसे जो आये उनसे चूल्हा जला
और फिर फूल खरीदे गए,,,,
कुछ फूल चदे मंदिर में, कुछ मजारों पर
कुछ वेणी में गूथे गए, कुछ हाथों के गजरे
गजरे,,,,,,?????????????????????????
अरे वही ! गुलों की तारीफ़ में शेर कहने वालों के लिए
कभी कभी कतारों में बैठी हुयी ,,,
चुना जाता है इन्हें दरिंदों के हाथों में जाने के लिए
इस खुशबुए चमन में गंदगी की तावीर के लिए
अँधेरी गलियों के दरमियान उनके घर के रास्ते
कोफ़्त...कहाँ ..कैसे,,,,,बस समझने की बात है
चूल्हा ,कपड़ा ,धुवां उठना चाहिए घरों से,
खुशबू आनी चाहिए ,पेट भरा होना चाहिए,,,
मगर,,,किसी के जलने का धुंआ ,,,,,,,????
एक फूल या या उसके जैसा ही पत्ता
शाख से अलग,,मंजिल मिलेगी कभी ?
नहीं ! पैरों के तले रौंदने वाले मिलेंगे,,,
कोई उठा कर सड़क के किनारे राफ्ता करेगा,,,,
मत कहो गुले गुलशन ,ये दरियाफ्त है
बस इज्जत बख्शो , इन छोटे हाथों को
ये मिन्नतों के लिए नहीं, अधिकारों के लिए हैं
माना की फूल बेचते हैं,कल बन्दूक बेचेंगे,,,,,,
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