Thursday, 12 July 2012

वज्र ढूढो पत्थरों में ,शक्ति का आभास होगा,,,


वज्र ढूढो पत्थरों में ,शक्ति का आभास होगा,,,

by Suman Mishra on Tuesday, 3 July 2012 at 11:53 ·



वज्र ढूढो पत्थरों में .
शक्ति का आभास होगा

क्यों शिथिल मन हो रहा तू ,
कृष्ण का परिहास होगा


वो नहीं आयेंगे अब तो ,
युध्ह लड़ने कौरवों से

सारथि तू खुद ही बनकर ,
जीत के तू पास होगा


चक्र्ब्यूहों सी ये दुनिया ,
हर प्रथा अभिमन्यु जैसी

जाने कितने जाल में हैं ,
तोड़ तम उजास होगा



हार कर तू बैठ जाए ,
रथ के पहिये टूट जाए

सूर्य की रश्मि के धागे ,
चल पकड़ प्रकाश होगा



रक्त की शिराएँ निश्छल
जड़ सा जडवत तन है पत्थर
क्या फर्क था जब था जीवन
और अब क्या थमा सा पल

क्यों ना बदला दृश्य को तब
सूनी आँखों बरसा बादल
कौन था जब मन था विह्वल
साँसों में अनगिनत हलचल




अम्बरों पर जल का तांता
बादलों में खुद को बांटा
रूई के फाहे से उड़ते
पत्थरों पर ये बरसते

मगर क्या पत्थर था पिघला
शक्ति का दामन ना विछ्डा
आपदाएं बरसती हैं
ताप से तन झुलसती है



खेल में पत्थर थे जोड़े
आड़े तिरछे छोटे बड़े
खेल में सम एक रसता
हार हो ये नहीं जंचता

पथ सुगम पथरीला रस्ता
दोस्ती या शत्रु  दस्ता
जब जहां ललकार सुनकर
रेत फिसली वज्र चुनता,

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