Wednesday, 2 July 2014

बाट और मिलन


मैं मिलन की बाट में हूँ 
तुम विरह के गीत गाना 
हर लहर पर नाम लिखकर 
अपनी पाती भेज दूंगा 

सांस भरकर पूछना तुम 
मेरे वाहक से ज़रा तुम
वो पथिक लम्बे सफ़र का
मेरी पाती बांच देगा

पृथा के पग संग मेरे
लगी माटी अंग मेरे
लौट आऊँगा तुरत ही
बात पर तुम आस रखना

मैं निनादित नाद से हूँ
अधरों के परिहास से हूँ
तुम ज़रा होठों से छू कर
इसको अपने पास रखना

कुछ नहीं बस शून्य ही है
प्रेम अब तक मौन ही है
है बड़ी विकराल लहरें
कर्म की पतवार रखना

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