मैं मिलन की बाट में हूँ
तुम विरह के गीत गाना
हर लहर पर नाम लिखकर
अपनी पाती भेज दूंगा
सांस भरकर पूछना तुम
मेरे वाहक से ज़रा तुम
वो पथिक लम्बे सफ़र का
मेरी पाती बांच देगा
पृथा के पग संग मेरे
लगी माटी अंग मेरे
लौट आऊँगा तुरत ही
बात पर तुम आस रखना
मैं निनादित नाद से हूँ
अधरों के परिहास से हूँ
तुम ज़रा होठों से छू कर
इसको अपने पास रखना
कुछ नहीं बस शून्य ही है
प्रेम अब तक मौन ही है
है बड़ी विकराल लहरें
कर्म की पतवार रखना
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