Wednesday, 2 July 2014

दृश्य समेटे हैं आँखों में



दृश्य समेटे थे जेबों में 
अरे वही ! मेरी आँखों से 
कुछ गायब है खोज रही हूँ 
शायद कहीं गिरे होंगे वो 

कुछ धुंधला अवशेष है उनका 
अरे वही ! मेरी आँखों में
एक वस्त्र में लिपटी काया
थी अनभिज्ञ गिध्ह नजरों से

एक छवि जो हिलती डूलती
अरे वही ! जो मैं थी विस्मित
था परिधान एक नारी का
मगर पुरुष गज गामिनी बना था

एक ध्वनि जो गूँज रही है
अरे वही ! मेरे कानो में
धूल में लिपटा था अबोध सा
बेच रहा था उज्जवल साबुन

वो पगली जो चीख रही थी
अरे वही ! थोड़ी सी पी कर
सूना वही थी कुछ दिन पहले
दुल्हन बनी किसी एक घर की

एक बड़ा सा चित्र टंगा था
अरे वही ! चलती राहों पर
पेड़ से लटका माला पहने
जेल से निकला कुछ दिन पहले

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