Friday, 18 July 2014

क्यों आता है चाँद एक दूल्हे सा बनकर

क्यों आता है चाँद एक दूल्हे सा बनकर 
ले आता बारात रोज तारों की भरकर 
सूरज क्यों फिर रोज अकेला आ जाता है 
शबनम को किरणों के रथ पे ले जाता है 

दे देता है शब् की सारी बूँदें उसको 
खुदगर्जी है कितनी चाँद के देखो रुतबे 
सुबह ओट की सूरज में छिपता फिरता है 
तारों को लपेटकर खुद के संग रखता है 

इस पर भी नखरे हैं इसके जाने कितने 
कभी तिहाई चौथाई में गाल फुलाए 
आता है एहसान दिखाने इकरारों में 
या फिर गायब नामुराद है बेजारो में 

कोई नहीं गीत गाता है सूरज के फिर 
करता है नक्काशी मन भर चाँद सितारे 
दुनिया भी ऐसी है भैया नखरे सहती 
थकी हुयी सी क्या कर लेगी कुछ ना कहती

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