फिर वही सपनो की भाषा
आस में डूबी थी आँखें
था पता वो दूर है अब
दूर हो रही पदचापें
भेजना पाती पहुंचकर
या संदेसा कुशलता का
हम यहाँ अछे रहेंगे
बात बस घर में निवाले
कितनी मजबूरी विरह मन
अश्रु सूखे हैं कभी के
प्राण हाथों में लिए वो
दीप यादों के जलाए
मौन है बचपन अभी तो
प्रश्न जाने कितने पाले
खोज लेगा खुद ही से वो
माँ का दुःख क्यों वो बढाए
एक दिन वो लौट आये
बाँध कर खुशियों के थाले
फिर परागित सुरभि खिलकर
गीत में रंग बसंत वाले
आस में डूबी थी आँखें
था पता वो दूर है अब
दूर हो रही पदचापें
भेजना पाती पहुंचकर
या संदेसा कुशलता का
हम यहाँ अछे रहेंगे
बात बस घर में निवाले
कितनी मजबूरी विरह मन
अश्रु सूखे हैं कभी के
प्राण हाथों में लिए वो
दीप यादों के जलाए
मौन है बचपन अभी तो
प्रश्न जाने कितने पाले
खोज लेगा खुद ही से वो
माँ का दुःख क्यों वो बढाए
एक दिन वो लौट आये
बाँध कर खुशियों के थाले
फिर परागित सुरभि खिलकर
गीत में रंग बसंत वाले
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