ईश्वर के दर्शन अब दुर्लभ है, सोने के भाव जैसे चढे आसमान पर,
फूल पत्र जल तो पुजारी चढ़ाते हैं, इंसानों की तो मर्यादा आसमान पर,
हम तो पुजारी हैं घर मैं ही श्रध्हा है, दर इनका महंगा है रत्नों की खान पर,
मिलना है इनसे गर,परिचय देना होगा, नहीं है भरोसा इंसान का इंसान पर,
इश्वर भी मिलने से कतराते लगते हैं,खाली हाथ जाना अब येही प्रमाण है,
कितना बड़ा आदमी है, कितना रसूख उसका, बात नहीं बची अब कैसा स्वाभिमान है,
मन मैं तलाशा बहुत प्रभू नहीं मिलते हैं, द्वार पे जो दरस करें खडा दरबान है,
मेहनत हलकान करे ,लोग थके हारे मिले, उसका भी दर बड़ा उसका एहसान है
अब तो ये गीता के वचन याद आते हैं ,कृष्ण रूप विष्णु का सब ही पुराण है,
कर्म करो, तप जैसा ,येही तप इश्वर है, दर्शन तो दूर बस कर्म ही प्रधान है,
पेट भरा अगर तेरा, प्रभू की तब चाह करो, फलित होगा उसी समय ये ही गुणगान है,
फूल पत्र जल तो पुजारी चढ़ाते हैं, इंसानों की तो मर्यादा आसमान पर,
हम तो पुजारी हैं घर मैं ही श्रध्हा है, दर इनका महंगा है रत्नों की खान पर,
मिलना है इनसे गर,परिचय देना होगा, नहीं है भरोसा इंसान का इंसान पर,
इश्वर भी मिलने से कतराते लगते हैं,खाली हाथ जाना अब येही प्रमाण है,
कितना बड़ा आदमी है, कितना रसूख उसका, बात नहीं बची अब कैसा स्वाभिमान है,
मन मैं तलाशा बहुत प्रभू नहीं मिलते हैं, द्वार पे जो दरस करें खडा दरबान है,
मेहनत हलकान करे ,लोग थके हारे मिले, उसका भी दर बड़ा उसका एहसान है
अब तो ये गीता के वचन याद आते हैं ,कृष्ण रूप विष्णु का सब ही पुराण है,
कर्म करो, तप जैसा ,येही तप इश्वर है, दर्शन तो दूर बस कर्म ही प्रधान है,
पेट भरा अगर तेरा, प्रभू की तब चाह करो, फलित होगा उसी समय ये ही गुणगान है,
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