एक विषय मिला है लिखने को *****नारी*********-जिसके बिना जीवन नहीं.
by Suman Mishra on Sunday, 25 September 2011 at 07:09
विषय मिला है लिखने को खुद के जीवन पर या किसी नारी पर लिखूं ?
रूप कितने, भाव कितने, ये कदम और वो तरीका,
भीगी सी वो हंसी लिखूं, माँ के माथे का वो टीका,
रिश्तों के कुछ नाम लिख दूं, या लिखूं दर्पण सलीका,
मन से मन की डोर बांधू ,या कहूं कोई कहानी,
बचपने का सुख मैं बांटूं, या ब्यथा की वो रवानी,
सारे भावों को जो सोचू, सारी उपमा याद कर लूं,
वर्ण रख दूं मैं छुपाकर, बस कहूं मैं कथा "नारी "
ओह ! लड़की जनी तुने, बंश कैसे अब चलेगा,
ये तो होती धन पराया, और सब कैसे पलेगा,
माँ की छाती, धन पराया, ह्रदय कोमल सारा जीवन,
उसके तन का एक टुकडा, येही से प्रारम्भ "नारी"
स्वप्नों की सौगात मिली है हर नारी को बचपन से,
आँख खुली और खुद से देखा,रूप एक अपने मन से,
ये उसके अस्तित्व का पहलू, नहीं जान पाया कोई,
पंख लगे जब स्वप्नों के तब उडी धरातल खुद लेकर.
छनक छनक वो नूपुर की धुन , स्वप्नों की सौगात लिए,
छोड़ दिया वो आँगन माँ का, लांघी देहरी अपने घर की,
अब ये परिणित होंगे सपने, जो सोचा वो होगा क्या,
प्रश्नों के दामन का आँचल, ओढ़ा है जो उसका क्या ?
अभी तो जीवन शुरू हुआ है, जीवन की संतति भी यही,
सुख दुःख येही धरातल अपना, क्या खोया क्या भोगा क्या,
नारी शब्द एक जीवन है,जीवन का मतलब या वस्तु,
हाथ खिलौना बन जाती है, खेल किसीने देखा क्या,
चूल्हा चौका और मात्री रूप का जगत नमूना बस नारी
फिर भी लोग विषय देते हैं एक निबंध लिखो नारी ,
क्यों ये प्रश्न मुझे चुभता है, क्यों नारी है विषय बनी,
जितना सोचूँ उतना उलझूं, मन को ब्यथित करे जननी
सारे रीति रिवाजों मैं नारी को आगे रहना है,
भाग्य विधाता दुःख दे जब तो बस नारी को सहना है,
सब कुछ ओढ़ लिया है इसने, अब भी विधि कुछ लिख है रहा,
अगर येही सब सहना था तो नारी का क्यों जनम दिया ?
अग्नि समर्पित सीता और राधा है समाई कृष्ण कहीं,
मीरा ने जब सब कुछ त्यागा, छोड़ सभी साध्वी बनी,
लक्ष्मी बाई ने खुद जौहर से सबको ललकारा था ,
माँ दुर्गा जो जग की जननी , सब असुरों को संहारा था,
हम सब काव्य पुराण पढ़ें पर महा काव्य बस नारी है,
जीवन का सुख दुःख इससे ही, दुःख से कभी ना हारी है,
लो दहेज़ की सौगातें और इसे जलाओ कागज़ सी ,
ओ ! पुरुषों क्या समझा तुमने, नारी विषय और वस्तु बनी ?
जीवन की हर विधा है सहती , हर पल को ये जीती है,
हर वर्गों मैं आगे रहकर , खुद को नारी कहती है
क्या अब तक बस येही है निश्चित, चलो लिखो कुछ नारी पर,
धरती से अब चाँद की दूरी , और नापना बाकी है ?
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