नजरअंदाज मत करना,
ये जो रोशनी है उसके लिए आसान होगी,
दिए की लो उसे रास्ता दिखा ही देगी,
सुबह निकला था ज़रा काम की तलाश लिए,
मन के अँधेरे मैं किरण थोड़ी सी बुहार लेगा.
... कैसे कह दें नहीं होती फरियादें पूरी,
वो तो अपना तर्जुमा है उससे मिन्नतों का,
चलता है मुसाफिर मंजिलों की तलाश लिए,
हम तो बस राहों को पलकों से नाप लेते हैं.
एक रास्ता जाने कितने कदम उसके साथ चले,
दिशाएँ "चार" जाने कितने लोग हर तरफ बिखरे हुए,
कितने खो जाते हैं इन रास्तों पर भटकते हुए,
तुम इस दिए की रोशनी को नजरअंदाज मत करना,
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