माँ ! जब तुम्हें पुकारा तुम पास आ गयी,
आवाज से भी तेज वो वेग तुम्हारा,
मन की सदा या स्वप्न बस तुम्हारे ही लिए,
अब दूरियों को क्या कहूं नासूर बन गयी.
...
हम दूर बहुत तुमसे, पर तुम तो पास हो,
हर बात तुम्हारी कहीं जुडी हुयी मुझसे,
हर नक्श तुम्हारा है, हम चले हैं उसी पर,
आदत नहीं थी दूरियां नासूर बन गयी,
हर दिन की कवायद बड़ी मसरूफियत यहाँ,
ये चैन अमन भूल कर सब दौड़ रहे हैं,
शामिल हुए हम जबसे, गाँव दूर हो गया,
मन दूर नहीं - दूरियां नासूर बन गयीं
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