Thursday, 29 September 2011

दुल्हन -नयी बहु, नए सपने


दुल्हन -नयी बहु, नए सपने

by Suman Mishra on Thursday, 29 September 2011 at 12:47

कुछ अरमान लिए अपने मन , नई बहुरिया आयी है,
लाज से उसके नयन झुके हैं सपनो मैं तिर आयी है,
कुछ दुविधा है, कुछ अंदेशा, जाने कैसा घर होगा ,
सपनो की जो  सेज सजी है, क्या ये अपना घर होगा ?

उसकी आशा उसके सपने सब परिणित स्थल है बना,
कदम संभल कर रखना होगा, जीवन का है नियम घना,
किसी को अपना करना है तो पहले उसको अपनाना,
खुद की पीछे सबको आगे ,माँ का था ये समझाना.



सुबह की लाली सूरज की जब  खिड़की से देखा उसने,
अब तक चन्दा मामा देखा, सुबह का सूरज था अनमना,
चहल पहल से घर गूंजा पर माँ ने नहीं जगाया क्यों,
भूल गयी वो पलभर ही सही ,हुई पराई बेटी हूँ.

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