वो सपनो की दुनिया से बाहर आकर सोचकर यूँ मुस्कराना,
अभी तो शुरुआत के दिन, दो दिलों का हार जाना,
मुस्कराना किस वजह से, है बड़ी तादाद लम्बी,
... घर का ये छोटा झरोखा, यादों से मुस्कान बिखरी,
वो बडे छोटे से दिन जब गली बचपन और गेंदें ,
एक ही पाले थे खेले, बंदिशों की बात झेलें ,
अब नहीं उठते हैं पग ये, भूलकर ऊंची दीवारें,
बागों मैं वो आम तोडे, भरते भागे सब कुलांचें.
अब ये मन अपना है निष्ठुर, भूलना है उस गली को,
है दीवारें ऊंची ऊंची, खोजती हैं मौसम की बहारें,
इन्हीं हम आइना सा साफ़ कर कुछ देख लेंगे,
जो रिवाजों मैं लिखा है, उन्हीं से सब बूझ लेंगे.
अब तो जीवन अलग सा है, अब नयी पहचान मेरी,
उसकी खुशियाँ हैं बचन सब, जो कहे वो मान लेंगे,
माँ !वही हूँ अब भी मैं बस ,घर है बदला अलग सा ये,
लोरियां सब याद रखना, जब मिलूँ मुझको सुनाना,
अभी तो शुरुआत के दिन, दो दिलों का हार जाना,
मुस्कराना किस वजह से, है बड़ी तादाद लम्बी,
... घर का ये छोटा झरोखा, यादों से मुस्कान बिखरी,
वो बडे छोटे से दिन जब गली बचपन और गेंदें ,
एक ही पाले थे खेले, बंदिशों की बात झेलें ,
अब नहीं उठते हैं पग ये, भूलकर ऊंची दीवारें,
बागों मैं वो आम तोडे, भरते भागे सब कुलांचें.
अब ये मन अपना है निष्ठुर, भूलना है उस गली को,
है दीवारें ऊंची ऊंची, खोजती हैं मौसम की बहारें,
इन्हीं हम आइना सा साफ़ कर कुछ देख लेंगे,
जो रिवाजों मैं लिखा है, उन्हीं से सब बूझ लेंगे.
अब तो जीवन अलग सा है, अब नयी पहचान मेरी,
उसकी खुशियाँ हैं बचन सब, जो कहे वो मान लेंगे,
माँ !वही हूँ अब भी मैं बस ,घर है बदला अलग सा ये,
लोरियां सब याद रखना, जब मिलूँ मुझको सुनाना,
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