Wednesday, 28 September 2011

वो बंद लिफाफा

वो मुड़ा तुड़ा सा एक लिफाफा ,जिसमें संचित कुछ यादें हैं
बचपन की चुगली से लेकर, इश्वर तक की फरियादें हैं,
उसे लिखा था एक बार कुछ , दिया नहीं हम हुए किसीके,
नाम नहीं बस शब्द लिखे थे, मेरे थे पैगाम ह्रदय के,

मन विरक्ति की बातें लिख दी, कोरे पन्ने भर डाले थे,
अंतिम अछर लिखते लिखते आंसू ने सब धो डाले थे
गर्म थी बूँदें ,मन था शीतल, नहीं बचा कुछ लिखते लिखते,
एक दास्ताँ अधूरी सी है, पढ़ा ना मैने लिख कर के फिर,

अब जैसे ही धड़कन बोले, चलो ज़रा खोले ये परते,
फटा लिफाफा तार तार सब , मन के भाव तिरोहित हो ले,
जीवन मैं जाने कितने छन ऐसे ही बस हो जाते हैं,
बार बार मैं याद करू ये पर ये लिफाफे बंद रहेंगे

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