अरमान
ये भी क्या तहजीब है, आग बस करीब है,
जल गए तो कोई भी पहचान नहीं दे सका,
पेट तो सब भर लिए , ख्वाहिशें सब जज्ब हैं,
शिकन कितनी बढ़ गयी, अरमान वो न कह सका,
... ... प्यार के दो बोल बस आवाज सुनकर जान लो,
हंसी की तहरीर पर तक़रीर लिख कर मान लो,
शकल क्या बस चाँद है या निशा की है चांदनी,
सांस कब ली पल वो कब अहसान वो ना कर सका
भीगती,सूखी लकडियाँ जलती हैं आखीर में,
देह की आभा सुखाई, है बंधी जंजीर में,
कंपकपाती ठण्ड या गर्मी में जलता जिस्म ये,
बस शुरू हो या ख़तम , दिल-जान वो न दे सका.
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