चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों...
by Suman Mishra on Friday, 30 September 2011 at 19:12
कुछ कहना है इस भाव मैं , रिश्तों मैं दरार है शायद
ऐसा ही होता होगा जब प्रेम चढ़ा परवान की कायद,
कितने आसानी से कह कर किया किनारा उसने उससे ,
कैसे कोई बनके अजनबी, कह देता है नहीं जानते.
ये उसने कहा था कभी
दामन को जलाया , परवाना कह दिया,
वो शमा बनी सभी उसके ही दीवाने.
देखा नहीं की कितने जले और रोशनी हुयी,
लोगों ने शमा से ही उजाला समझ लिया .
ये हमने कहा था
हमसे ना होगा जूझना झंजावतों मैं यूँ,
तुम राह चलो अपनी , हम तय करेंगे खुद,
तुम खोज लो खुद के लिए अपना सहारा यूँ,
हमने कसम खाई है हम ना याद करेंगे.
ये सच नहीं जो हमसे मिला वो हमारा है,
ये सच है जो नहीं मिला मेरा नहीं है,
आसान राह , रिश्ते, स्वीकार जरूरी,
फिर सोचना तुमसे ना मिल पाए हम कभी
ये प्रेम -पुरुष नारी सब एक ही मोहरे,
मजबूरियों मैं गोते लगाकर मिले नहीं,
जो लड़ सका सबसे, वोही मीत बन सका,
वरना तो छटेंगे नहीं बादल घने कोहरे
इससे तो है अछा की जुदा होके हम देखें,
क्या जिन्दगी के मायने जो तुम नहीं यहाँ,
कितने बिछाए फूल जो राहों मैं हमारे,
तुमसे मिले कांटे ,ज़रा हम चुभा कर देखें.
बस याद को भूलूँ मुझे इतनी मिले मोहलत,
थोड़ा सा ही सही, अपनी हो जरूरत.
खुद को भुलाया मैंने उसकी ही वजह से,
अब अजनबी बने हैं तो पहचान मिली है..
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