Saturday, 1 October 2011

बारिशों की ये बूँद जो जेहन पे छा गयी ,,,,,


 by Suman Mishra on Saturday, 01 October 2011 at 21:14



ये धरा और ये गगन, बीच मैं खडे हैं हम,
उर्दू के अशआर सी, बारिशों की बूँद ये,
छु के ये फिसल गयी, ज़रा सी मचल गयी,
रोकने का मन जो था, ये धरा से मिल गयी,

मन बहा था फूल सा, याद पंखुरी लिए,
साथ साथ गीत था,मल्हार के अवरोह से,
दीप राग जल उठा था, अग्नि की प्रभा सी थी
बारिशों की बूँद ये , मन को मात कर गयी.

हमने जो बढाए हाथ, यूँ थी खुली मुट्ठियाँ,
लूं  बटोर बूँद ये, मोतियों की श्रंखला,
जुड़ गयी जो मन से ये, हार बन पहन तो लूं,
दिल की बात क्या करूँ, दिल ज़रा उदास है.

फूल से झरी जो बूँद, खुशबुए बहार सी,
फूल रंग मैं खिला, पात की ना बात थी ,
नूपुरों की ध्वनि हुयी, जो झरी ज़रा सी ये,
मन मचल मचल गया, मुट्ठियों मैं कैद ये.



अब कहाँ सबा है ये, अब ये शाम और है,
घर की राह पर खडे , बूँद की पुरजोर मैं,
बूँद बारिशों की ये, छु गयी और उड़ गयी,
धुप की तपिश सही, बारिशों की बूँद ये.

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