श्याम मीरा , राधे श्याम , कौन रूप जानू.
by Suman Mishra on Monday, 03 October 2011 at 13:25
प्रेम हो तो श्याम मीरा, राधे तो नियरे रही ,
राधे नाही मिली श्याम, तबहूँ अधिकाय रही,
जाने कौन रीत प्रीत, जग के खेवैया से,
मीरा सब भूल भाल प्रीत ई निभाय रही.
बांसुरी की धुन कबहूँ मीरा न त सूनी नाहीं,
कत्थक को ताल ज्यों राधे यूँ लगाय रही,
लय से मदमस्त ब्रिद, गोकुल की गलियन मा,
मीरा करताल से ही श्याम को रिझाय रही.
बहुतेरे प्रेम देख्यो, जौन की मिसाल नाही,
राधे श्याम ,दिव्या प्रेम मन भरमाय रह्यो,
नैनन मैं बंद मीरा श्याम की पुजारन भई,
नैनन मैं राधे काहे श्याम ने लुकाय लियो,
चरण पखारो श्याम मीरा मनुहार करे,
जगत नियंता मीरा ह्रदय मैं समाय लियो,
राधे श्याम एक ही तो मीरा जाने अलग अलग,
एही बात सोच श्याम ह्रदय बैठाय लियो.
मीरा भई दीवानी , प्रेम रस डूबी चाखे
विष ओ पियालो होंठ तै लगाय लियो,
श्याम श्याम श्याम बस मन मैं पुकारो आज,
सारी विधा श्याम मय, राधा को रिझाय बस.
एक श्याम एक मीरा पर नाही दूजी राधा,
राधे श्याम एक नाम , एक सी जनाय दिखो ,
भ्रमित है जग सारो, मन की ई लुका छिपी,
मन मैं बसों हे श्याम, मन ना दुखाय कोई.
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