जाने कितने रंग छुपे हैं नारी और रंगों का मिश्रण,
सुख दुःख, प्रेम, स्नेह विछोहों से आप्लावित नारी चिंतन,
नदियाँ, पर्वत, सागर रंग मन, मंथन भी कुछ क्रंदन सा है,
फिर भी शांत सौम्य प्रतिमा सी बहती खुद से भाव निरंजन
शांत चंचला मृगनयनी सी,एक एक पग संयोजित सी,
हर पल एक चुनौती देता, चुनती सबको मन आँचल में,
धीरज के गहने से लदी है,आभा से परिपूरित नारी,
पर जो विषय कहीं भी देखा, नारी को कहते लाचारी,
समय समय पर सब कुछ बदला, नारी क्यों ना बदली अब तक,
खुद को चोला बदल लिया तो, जन का मन है वही पुरातन,
सदियाँ बीती एक शब्द बस नारी नारी लिखो उसी पर,
क्या लिखना अब समझो खुद से, नारी जीवन नहीं बेचारी,
सुख दुःख, प्रेम, स्नेह विछोहों से आप्लावित नारी चिंतन,
नदियाँ, पर्वत, सागर रंग मन, मंथन भी कुछ क्रंदन सा है,
फिर भी शांत सौम्य प्रतिमा सी बहती खुद से भाव निरंजन
शांत चंचला मृगनयनी सी,एक एक पग संयोजित सी,
हर पल एक चुनौती देता, चुनती सबको मन आँचल में,
धीरज के गहने से लदी है,आभा से परिपूरित नारी,
पर जो विषय कहीं भी देखा, नारी को कहते लाचारी,
समय समय पर सब कुछ बदला, नारी क्यों ना बदली अब तक,
खुद को चोला बदल लिया तो, जन का मन है वही पुरातन,
सदियाँ बीती एक शब्द बस नारी नारी लिखो उसी पर,
क्या लिखना अब समझो खुद से, नारी जीवन नहीं बेचारी,
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