मन का दिया या मिटटी का ?
by Suman Mishra on Monday, 24 October 2011 at 00:21
आये होंगे राम कभी , खुशियाँ छाई होंगी वहाँ ,
जाने कितने दीपक होंगे , जाने कितनी रोशनी,
सूर्य की आभा जैसा मन सबका दीप दीप सा जला वहाँ
दिप दिप करता हर ललाट , मन तन से हर्षित वो जहां
राम राज्य भी बीत गया ये कलयुग की दीवाली है,
हर मन तन है थका हुआ, हर जीवन एक सवाली है.
एक एक दीपक की कीमत, एक एक पल खटा हुआ,
घर मैं दीपक ,मन मैं अन्धेरा ,निशा रूप ये दिवस जिया .
कुछ खुशिया खुद निर्मित कर माटी के दिए सा गढ़ ले हम,
चाक चला कर मिटटी से ही पल को निर्मित कर ले मन
बाँट बाँट कर खुश हो लेंगे, दुखी ना कोई मन होगा,
आखिर राम तो आये ही थे, कुछ पल आलोकित होगा
क्या करना है लंबा जीवन , जब तक दिया मैं बाती है
जला करेगा साथ सभीके , हर दिन ही दीवाली है,
शुभ प्रभात या शुभ रात्री हो, जगमग मन मैं ज्योति जले
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं चाहूँ मैं जन जन तक पहुंचे .
No comments:
Post a Comment