Saturday, 1 October 2011

अब और नहीं


 by Suman Mishra on Sunday, 02 October 2011 at 04:45


बहुत हुआ अब विरह प्रेम, अब और नहीं कुछ और कहो,
क्यों भाव बाव मैं बहते हो, थोड़ा सा खुद को देश कहो,
ये प्रेम , विरह कब अपना है, हर देश की ये परिपाटी है ,
रहती है हीरोइन भारत मैं, और हीरो विदेशी नागरिक है,

इससे क्या होगा, कुछ भी नहीं,
बस एक फिल्म ही देख लो तुम,
थोड़ा सा धुवां अपने घर का,
ऊंची लहरे उसके मन की.



वो ले के दुनाली खडा वहाँ , दुश्मन की नजरें भांप सके,
गर चुका वो थोड़ा सा भी, दुश्मन ये धरा ना नाप सके,
औरों का क्या कहना है यहाँ, सब डूबे मस्ती खोरी मैं,
वो प्रहरी है पैदाइश से, हम क्योंकर झेलें दंश यहाँ .

वो तकती राहें , पति के लिए,
तैनात खडा वो सीमा पर,
वादा करके न आया तो,
करती मन्नत दिन रात यहाँ,

थोड़ा सोचो , ये माँ अपनी ,जिसपर खेले हम सभी यहाँ,
उसका सौदा कैसे करलें , ऋण चुका नहीं जन्मो का जहां,
मरकर भी न  पूरा होगा, हम जन्म इसी पर लेंगे फिर,
माँ अपनी धैर्य शक्ति से फिर, हमको सम्मान दिलाएगी.

कब कहाँ घटित फिर हो जाए, मत भूलो देश तुम्हारा है,
ये मात्री भूमि बस अपनी है, हक़ या अधिकार हमारा है,
तत्पर होकर ,आँखें हो खुली, कोई इसको ना भंग करे,
तुम कुछ भी करो, पर सैनिक बन ,इस जननी  का उद्धार करो

जीवन की ललक तो सबको है, पर सार्थक कितना हुआ यहाँ,
हम भारत के लोगों को . अधिकार मिला ,कितना छीना ,
चढ़ जाओ अरि के सीने पर, सम्मान हमारा देश है बस,
वन्दे मातरम् को फील करो, जब जब ये गीत दोहराते हो,

1 comment:

  1. वाह सुमन !
    अच्छा लिखती हो !
    बधाई !
    आज आपका यह ब्लोग देखा-अच्छा लगा !
    दमदार है -बधाई !
    फ़िर आऊंगा !

    ReplyDelete