एक तस्वीर जो अधूरी ही रही
by Suman Mishra on Saturday, 29 October 2011 at 16:06
कितने मायने हैं इस तस्वीर के
रिश्तों मैं ढलती हुयी जाती है,
किंतने नामों ,बे-परवाजों से
हमेशा नवाजी जाती है,
पलती बढ़ती घर आँगन मैं,
कलियों फूलों के माफिक सी,
अब आगे जाने क्या पथ हो,
क्या कहती हाथ लकीरे ये,
बस प्रतिमा कह लो या कह दो,
ये नारी जैसी लगती है,
आगे जाने क्या नाम बदा,
शहतीरों सी क्यों गिरती है,
कुछ अग्नि चढी, कुछ फूल मिले
कुछ काँटों की सौगात लिए.
कुछ शब्द मिले आशीषों के,
आगे जाने क्या पथ हो,
क्या कहती हाथ लकीरे ये,
जाने क्या नाम मिले इसको,
बस कृति बनी ये नारी की,
तुम नाम की परिभाषा कह दो,
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