क्यों पसरा है मौन यहाँ पर,
कोई छला गया है मन से,
जीवन की क्या गजब लालसा,
मन त्रिश्नित के खेल यहाँ पर.
कितने वादे , कितनी बातें ,
सब है टूट टूट कर बिखरी,
मन अथाह पर भ्रमित भ्रमित सा,
सोच वहाँ तक नहीं थी पहुँची.
जीवन मैं रिश्तों की गरिमा,
तोल तराजू क्यों ना करता,
जितनी सच्चाई के वादे,
उतना मन स्वीकार ना पाता.
छनिक भाव वश, मन मंदिर का
पट है खुला सब रहते मन मैं,
इश्वर से तो पूछ ज़रा तू,
क्या तू भी है उसके दर पे ?
उसको ना स्थान दिया क्यों,
मानव मानव का ही साथी,
पहले बस जा इंसानों सा,
फिर जलना ज्यों दिया या बाती.
कोई छला गया है मन से,
जीवन की क्या गजब लालसा,
मन त्रिश्नित के खेल यहाँ पर.
कितने वादे , कितनी बातें ,
सब है टूट टूट कर बिखरी,
मन अथाह पर भ्रमित भ्रमित सा,
सोच वहाँ तक नहीं थी पहुँची.
जीवन मैं रिश्तों की गरिमा,
तोल तराजू क्यों ना करता,
जितनी सच्चाई के वादे,
उतना मन स्वीकार ना पाता.
छनिक भाव वश, मन मंदिर का
पट है खुला सब रहते मन मैं,
इश्वर से तो पूछ ज़रा तू,
क्या तू भी है उसके दर पे ?
उसको ना स्थान दिया क्यों,
मानव मानव का ही साथी,
पहले बस जा इंसानों सा,
फिर जलना ज्यों दिया या बाती.
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