by Suman Mishra on Monday, 10 Octob
er 2011 at 22:24
आज वो नहीं
मगर जब भी कागज की कश्ती बनेगी
लहरे भी फर्शों से दिल मैं उतरेंगी,
होंगी शब्दों की गहराइयां अथाह उनमें,
ये सागर बनेगा , अश्रु बूँदें भरेंगी.
बड़ी ही अजब जिन्दगी की कहानी,
जाने कब ये हमसे यूँ रूठ बैठे ,
सुना है इसे चाहे जितना संभालो,
बड़ी मूडी है ये, करती अपनी मनमानी.
कभी तो हंसाती ये बिन बात के ही,
कभी रो रुलाके ये आँखें सुजाती,
कभी फेरती है आशाओं पे पानी.
कभी ये सुनाती नानी की जुबानी.
बहुत फाडे पन्ने बनायी थी कश्ती,
मगर कर सके ना हम इस पर सवारी
वो बैठा वहाँ खेलता खेल हमसे,
उसीके हैं प्यादे ,खेल अब भी है जारी.
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