Thursday, 13 October 2011

वो कागज़ की कश्ती - (श्री जगजीत सिंह जी को नमन)


by Suman Mishra on Monday, 10 Octob

 

er 2011 at 22:24
Paper boats White,green and red paper boat Cutcaster

आज वो नहीं

मगर जब भी कागज की कश्ती बनेगी
लहरे भी फर्शों  से दिल मैं उतरेंगी,
होंगी शब्दों की गहराइयां अथाह उनमें,
ये सागर बनेगा , अश्रु बूँदें भरेंगी.



बड़ी ही अजब जिन्दगी की कहानी,
जाने कब ये हमसे यूँ रूठ बैठे ,
सुना है इसे चाहे जितना संभालो,
बड़ी मूडी है ये, करती अपनी मनमानी.


कभी तो हंसाती ये बिन बात के ही,
कभी रो रुलाके ये आँखें सुजाती,
कभी फेरती है आशाओं पे पानी.
कभी ये सुनाती नानी की जुबानी.

बहुत फाडे पन्ने बनायी थी कश्ती,
मगर कर सके ना हम इस पर सवारी
वो बैठा वहाँ खेलता खेल  हमसे,
उसीके हैं प्यादे ,खेल अब भी है जारी.


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