by Suman Mishra on Friday, 2 December 2011 at 11:38
रोज आना , रोज जाना और नतीज़ा क्या है,
आँख मैं नीद , रात के ख्वाब का मतलब क्या है,
ये जो जीवन , एक हकीकी बस बयान सा है,
निशा के तम में निश्चल सा पडा रहता है.
जाने कितने सन्देश मन के रास्ते होकर,
ह्रदय की धमनियों को निसतेज किया करते हैं,
वही बयार में उडती हुयी चिठ्ठी की महक
आँख की रोशनी को भेद दिया करती है,
कोई एक बूँद जिसमें रंग नहीं रूप नहीं,
हर एक आकार और रंग में घाल जाती है,
हम एक जिद्द में अड़े खड़े यूँ ही रहते हैं,
कभी पतझड़ में भी बहार चली आती है,,,
हमें बहना है खुद अनगिनत प्रवाहों में,
एक भाषा नहीं मन के असंख्य भावों में,
नहीं बंटना मुझे इन रोशनी के रंगों में,
ये तो शागिर्द सारे सुबह की निशाओं के,
एक राही सा ये जीवन जो पथिक नाम मिला,
बस चले जा रहे हम रोशनी के घेरों में,
रोज ही सुबह और शाम यूँ ही गिनते हैं,
कभी गिनती के दिन भी गलत गिने जाते हैं,
बंटे हैं हम, बंटा जहां , बंटा हर लम्हा है,
सबका हिस्सा नहीं दिखता ये एक जूमला है,
कहीं रिहाएशी नहीं जिसे अपना कह ले,
जिन्दगी सुबह और शाम -किस्से दरियाफ्त करे,
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