by Suman Mishra on Wednesday, 7 December 2011 at 01:30
ये उपरोक्त पंक्तियाँ उभान जी की कविता से ली है मैंने,,,,इसमें जिस इन्तजार शब्द को जिस सुंदर
भाव से लिखा गया है मैंने ये पंक्ति उभान जी से मांग कर ले ली ...इन्तजार...शब्द अकेला नहीं होता,
इस शब्द के साथ किसी ना किसी का साथ जुड़ा होता है, ये शब्द इतना आसान भी नहीं - इसमें इंसान
के संयम ,धैर्य के इम्तहान लेने की ताकत होती है...इंसान इंतज़ार तो करता है लेकिन परिणाम उसके
हाथ में, आशा, निराशा, मिलन,विछोह ,खुशी ,गम सब इस "इन्तजार" शब्द से जुड़े हैं...फिर भी
इन्तजार में एक खूबी है...जब तक ये ख़तम नहीं होता आशा और संयम साथ नहीं छोड़ते......
इन्तजार -रहेगा तुम्हारा रहेगा ,साँसों के इस पार से उस पार तक रहेगा,
जितनी दूर तक निगाहें रोशनी का साथ दें,
चाहे कितने भी घने तम में अपना हाथ दें,
ढूंढ लेगा तुमको ये मन ,पास हो या दूर हो,
सांस के इस पार हो या कितने भी मजबूर हो.
बांसुरी की धुन तरंगित ,स्वास से आह्वान हो,
एक शब्द ही पगी है ये ,एक राधा नाम हो,
मोह ,आशा और संयम येही तो रचता है भाव,
युग युगों से एक ही मोहन से राधा नाम हो.
रूप ना बदला युगों से , मैं खडा जडवत यथा ,
हे प्रिये तुम पार कर लो, मेरे जन्मों की ब्यथा,
हस्त की रेखाएं दम्भित, बदलती हैं रास्ते,
तुम चली आना पुकारे मन मेरा मन द्वार से.
क्या लिखे विधि कथा अपनी, विरह और विछोह के,
शब्द और मन जब मिले हों, नहीं कोई छोर है,
क्या छितिज़ तुम देखते हो, हम नहीं तुमसे अलग,
रात दिन और धरा अम्बर, बाटते अपने सबर (सब्र)
हम लिखेंगे खुद से अपनी प्रेम की परिभाषा यूँ,
प्रेम हमसे शुरू होगा ,अंत की अभिलाषा क्यों ?
मैं एहीं ना डिगा पल भर ,मैं ही अब विस्तार हूँ,
तुम जहां तक देखना, मैं ही तुम्हें स्वीकार हूँ,
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