Friday, 16 December 2011

लम्हा लम्हा यूँ पिघलती जिंदगी


by Suman Mishra on Thursday, 15 December 2011 at 15:13


लम्हा लम्हा यूँ पिघलती जिन्दगी ,
एक कम और एक बढ़ती जिदगी,
एक पल खुशियों की बारिश हो गयी,
एक पल में बह गयी ये जिन्दगी,

आज पल ठहरा हुआ है जाने क्यूँ,
हम वही बिलकुल ना बदली जिदगी,
ये सभी घड़ियाँ अलग सी चलती हैं,
हर तरफ अनजान शकले जिन्दगी,


जाने कितने रंग बदले चेहरे ये,
रंग को परवान चढ़ती जिदगी,
उसके गोरे रंग से कालों का दिल,
करती बदगुमान फिर से जिन्दगी,

चेहरे माना कृति है कुछ अलहदा,
दिल बदलकर चल रही ये जिदगी,
कैसे ना हम अलग रस्ते यूँ चले ,
बीच में अनगढ़ सी रेखा जिदगी.
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