Suman Mishra on Tuesday, 13 December 2011 at 16:38
चुपके से रोया था मन जब उसकी बात पे आयी हंसी,
चुपके से दो आंसू टपके, जब रुमाल से पोंछे थे,
चुपके से दो शब्दों ने फिर आकर थपकी दी धीरे से,
कोई देख ले ना इनको ये, गिर मगर आवाज ना हो.
इनके रस्ते आँखों से ये बिना कहे आ जाते हैं,
आये तो आया ही करे पर याद किसी की लाते हैं,
कुछ भी ना भूला है अब तक, ये तो बस बहने के लिए
कह दो आंसू की बूंदों को, यादों को भी ले जाए.
ये दिल बहुत बड़ा है लेकिन याद का कोना छोटा है,
उस छोटे कोने में जाने यादों का एक जखीरा है,
इनके आने जाने की मैंने ना की पाबंदी है,
बस आंसू की बूँद में शामिल अक्सों की रजामंदी है,
लगता है अब याद नहीं तो चुपके से सहना कैसा ,
कुछ दिल के टुकड़े हैं रखे, बाँट इन्हीं में रख देंगे,
नहीं वफ़ा के ओहदे होंगे ,बस इनको एक घर दे दूं,
मेरे दिल का कोना जख्मी , यादों को घायल कर दूं?
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