by Suman Mishra on Friday, 16 December 2011 at 17:43
ये सर्दी भी ना , गर्मी की तपिश में हम इन्तजार करते हैं सर्दी के ठंडक की क्यों ?
क्योंकि....
लाल हरे और नीले पीले स्वेटर के फैशन में भूले,
क्या सर्दी और शीत के लहरी, खाते खाते गाल ये फूले,
दिन भर मुंह बस चलता रहता, कितना कुछ सब पेट के अन्दर,
गए पुराने दिन तपते (अलाव) के, अब तो जलता दिन भर हीटर
माँ के हाथ के गरम सिंघाड़े ,आलू, मटर, गोभी के पराठे,
ठंडी हो या , बर्फ गिरे अब, गरम गरम काफी मग प्यारे
माँ के हाथो स्वेटर बुनना, छोटी सी जेबों की मस्ती,
टॉफी बिस्किट भरे हुए सब, कुतर कुतर हम खाते दिन भर,
मगर रूप ये भी जीवन का ,बड़ा दुखद सा दृश्य यहाँ पर,
जाने कितने जीवन भूले ,येही गरीबी ब्यथित यहाँ पर,
क्यों जीवन के दुःख सारे कितना कष्ट ये भोग रहे हैं,
येही प्रकृति जो सुंदर दिखती, उसके रूप से दुखी हुए हैं,
ये तो तयं है जीवन के हर पहलू में अच्छा या बुरा है,
एक तरफ तो मरीचिका सा सुंदर रूप लिए तिरता है,
पर ये दूसरा पहलू कैसा, जिसे देख हम सब कुछ भूले,
उनके दुःख से परिचित हम सब, पर सब अपने रंग में झूले
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