Friday, 16 December 2011

मैं हूँ अभी



by Suman Mishra on Tuesday, 13 December 2011 at 16:41

वर्षों से निशानिया कितनी , कितनी शह और मात मिली,
आज अगर हाथों की ताकत कम है फिर भी दाद मिली,
ये हाथों की रेखाएं देखो क्या ये बोलो नकली हैं ?
कभी ना कोई बेच सका इनको क्या ये इतनी महगी है?

हर तन का सौदा करता ये जहां बड़ा बाजार बना,
आज तलक मेरे खुद के अरमानो का पहचान बना,
अब जीवन के बाजारों में हाथ उठा कर फिरता हूँ,
देता हूँ मैं खुद की गवाही, खुद ही हामी भरता हूँ.

जर्जर तन ,निरीह सी आंखे, क्या ये लौटेगा फिर से,
बचपन के देहरी पर जिद कर , प्रश्न करेगा ये सबसे,
वो जिसने खींची ये रेखा, क्या रवानगी लिखी यहाँ,
कोई तस्मे खोल रहा है, वापस आकर घर पे यहाँ.


इन्तजार है मुझे सफ़र का, बैसाखी तुम मत  देना,
चल दूंगा खुद से ही मन के पंख लगा मैं रुके बिना ,
मैं तो अभी  हूँ ये प्रमाण मेरे हाथों को लहराना,
रेखाओं के रस्ते ,गलियाँ घूम लिए अब था जितना,
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