Friday, 16 December 2011

पैबंद ...टुकड़े होती जिंदगी, तार सांस के बाकी हैं



by Suman Mishra on Tuesday, 13 December 2011 at 01:12

टुकड़े टुकड़े जीवन से कुछ कतरे हैं जो जोड़ना है.,
लम्हे  जो अब रूठ गए , वापस उनसे मिलना है,
जाने कब इस जीवन की संध्या हो विदा हो लें,
कह दो उनसे पथिक खडा है,इन्तजार चौराहे पर

कम्पित तारों की गति अब ,एक सरगम सी सुर कहती है,
शब्दों के अनसुलझे ब्योरे, अपनों से साझा करती है,
कोई उसको गुनता है, कोई  सुनकर हंस देता  है,
अब तो जीवन का अंतिम , मन निर्भय सा ही रमता है.


मन गाथा तो बहुत बड़ी है,ये सप्तक सुर के है करीब,
अवरोही सा लौटा हूँ मैं , आरोहन कर जीवन के नसीब,
बचपन के स्नेह से वंचित सब गंतव्य पे निकल गए
मैं टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ, टूट टूट जो बिखर गए.


जर्जर वस्त्रों को पहना अब, फटे हुए को सीना क्या,

हुआ पुराना जाने कबसे, अब तन ये बदलेगा क्या,

इसकी आभा रंगों से है, जो मैंने ही बनाए हैं.
एक गमन जो अब निश्चित है , अभी तलक भरमाये क्यों.

 

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