by Suman Mishra on Saturday, 3 December 2011 at 00:51
सुना है शब्दों से चोट बहुत लगती है,
वैसे तो विष से बुझे तीरों की दवा बनती है,
एक ख़ामोशी और द्वन्द के आयामों में ,
कुछ ना कहना कभी बस आह ! ही निकलती है
ये बेजुबान है दिल कोई गिला शिकवा नहीं,
इसकी रस्मे भी बड़ी वेवफा निकलती हैं,,,
ये जख्म जिंदगी की यादों से,
एक दूरी से मगर साथ साथ चलते हैं,,
मगर परवाह किसे, हम तो खुद आवारा से,
सारे जख्मो की फटी पोटली भी सिलते हैं,,,
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