Monday, 5 December 2011

प्रेम क़ुरबानी का दूसरा रूप है....?

 

by Suman Mishra on Saturday, 3 December 2011 at 12:42

प्रेम और कुर्बानी....किसने किसको दी ?
किसने प्रेम किया , कौन भूल गया  ?
कौन खडा है राहों में, किसी के इन्तजार में,
कुर्बानी और कुर्बान...दोनों ही साथ साथ हैं,

कुर्बानी देकर क्या प्रेम ख़तम हो जाता है,
नहीं ,,,शायद...ये उस कुर्बान होने वाले से पूछिए,,,
किसीसे से सूना था,,,,
घायल की गति घायल जाने....

खैर...प्रेम रक्त के प्रवाह में,साँसों के ठहराव में,
जीवन बस मर्यादित हो, कुछ भी अभाव हो,
चलो दे दिया उसे, सारी खुशी उपहार में
मेरे पास क्या रहा , उसकी यादों के सिवा,


ये भी एक रूप है, प्रेम तो सर्वज्ञ है,
वो जहां मैं भी वहीं, सभी से अनभिज्ञ हूँ,
बात मेरे साथ है, साथ में ही  रहेगी,
बूझना तो बूझ लो, एक पहेली सी है,

एक दर्द एक टीस, एक ही स्वरुप बस,
मन में ही छुपा है वो, मन ही मन अधीर है,
है परे सभी से ये, कच्ची सी बस एक डोर है,
प्रेम में जो हार है, अगले जनम की जीत है....

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